- अर्थ -जो मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है। मुझे कपट और छल-छिद्र नहीं सुहाते।
- इसका तात्पर्य है कि जिसका मन निर्मल अर्थात निर्विकार होता है और उसके मन में किसी के प्रति कपट भाव नहीं रखते हुए छलावा नहीं करता अर्थात उसका व्यवहार सदैव सच्चा रहता है, इस प्रकार के व्यक्ति उस परम पिता परमात्मा को अत्यंत प्रिय होते हैं और उन पर परमात्मा की विशेष कृपा बनी रहती है, उनकी सभी मनोकामनायें परम पिता परमात्मा की कृपा से पूर्ण होती हैं |
- जीने की कला- इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपना मन निर्मल रखना चाहिए इससे चरित्र भी स्वच्छ रहेगा और व्यवहार में भी सरलता आएगी जिससे हम परम पिता परमात्मा के कृपा पात्र तो बनेंगे ही जिससे हमारा जीवन सदैव प्रकाशित रहेगा |
- जय राम जी की
- पंडित प्रताप भानु शर्मा
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