रविवार, 11 अप्रैल 2021

(50)ऐसे कुमित्र को त्यागने में ही भलाई है |

आगे कह मृदु बचन बनाई |   

 पाछे अनहित मन कुटिलाई ।।

जाकर चित अहि गति समभाई ।

अस कुमित्र परिहरहिं भलाई।।

अर्थ - जो सामने तो बना - बनाकर मीठे वचन बोलता है  और पीठ पीछे बुराई करता है और मन में कुटिलता रखता है | हे भाई जिसका मान सांप की तरह टेढ़ा है, ऐसे कुमित्र को त्यागने में ही भलाई है |


  इन चौपाईयो के माध्यम से तुलसीदास जी कहते हैं कि कुछ लोग ऐसे होते कि आपके सामने तो आपसे मीठा-मीठा बोलेंगे। आपसे अच्छी-अच्छी बाते करेंगे, आपको लगेगा कि यह हमारा हितेषी है,परन्तु यह आपकी पीठ पीछे आपकी ही निंदा करते हैं। आपका बुरा होने की कामना करते हैं। ऐसा मित्र जो आपके सामने तो आपसे चिकनी चुपड़ी बातें करे और आपके पीछे आपके प्रति कुटिलता का भाव रखे। ऐसा व्यक्ति जिसका मन साँप की चाल के समान टेढ़ा हो, ऐसे कुमित्रों से सदैव बचकर रहने में ही भलाई है। 
जीने की कला - इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें इस प्रकार के कुमित्रों की पहचान करके उनका तुरंत त्याग कर देना चाहिए | इसी में हमारी भलाई है |


  जय राम जी की
                         


                पंडित प्रताप भानु शर्मा 

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