शनिवार, 3 अप्रैल 2021

(44)तुलसी जे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोइ।

 तुलसी जे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोइ। तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोइ।।





अर्थ:

दोहे में महाकवि तुलसी दास जी कहते हैं कि जो लोग दूसरों की बुराई कर खुद प्रतिष्ठा पाना चाहते हैं, वे खुद अपनी प्रतिष्ठा खो देते हैं। वहीं ऐसे व्यक्ति के मुंह पर एक दिन ऐसी कालिख पुतेगी जो कितनी भी कोशिश करे लेकिन मरते दम तक साथ नहीं छोड़ने वाली।

इसका तात्पर्य है कि हमें किसी दूसरे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को धूमिल करते हुए अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए कार्य नहीं करना चाहिए ऐसा करना गलत है और जो ऐसा कार्य करते हैं वह भले ही ऐसा करके अपने मन में प्रसन्न होते रहें परन्तु एक समय अवश्य आएगा जब उनकी प्रतिष्ठा की धज्जियाँ उड़ जावेगी और यह उनके जीवन में हमेशा के लिए कलंक लगा रहेगा |

  इससे हमें यह शिक्षा मिलती है  कि हमें सबकी प्रतिष्ठा का ध्यान रखते हुए कार्य करना चाहिए | इसी में हमारी प्रतिष्ठा है |

जय राम जी की

                     प्रताप भानु शर्मा 

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