सोमवार, 19 अप्रैल 2021

(53)परहित बस जिन्ह के मन माहीं।

परहित बस जिन्ह के मन माहीं।

तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥

अर्थ- जिनके मन में दूसरे का हित बसता है (समाया रहता है), उनके लिए जगत्‌ में कुछ भी (कोई भी गति) दुर्लभ नहीं है। 

   इसका तात्पर्य है कि जिस व्यक्ति को दूसरे की सहायता करने की इच्छा रहती है, वह दूसरों के हित करने के बारे में ही विचार करता है, ऐसे व्यक्ति को इस संसार में कुछ भी कठिन नहीं है| आज के सामाजिक परिवेश में भी ऐसे व्यक्ति आपको देखने मिल जावेगे जो अपनी चिंता न करते हुए दूसरों की सहायता करते हैं | अभी कोरोना काल चल रहा है, हमारे देश में त्राहि त्राहि मची हुई है प्रतिदिन ढाई लाख मरीज बढ़ रहे हैं, इन मरीजों की सहायता के लिए डॉक्टर,नर्स सभी रात दिन कार्य कर रहे हैं | कई सामाजिक संगठन भी सहायतार्थ कार्य में संलग्न हैं | श्री रामचरित मानस की यह चौपाई उनके लिए प्रेरणा दायक और सार्थक सिद्ध होती है |

जीने की कला - इस चौपाई के माध्यम से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव दूसरों के हित के कार्य करना चाहिए | यदि हम इस प्रकार के कार्य करते हैं तो हमारे  द्वारा करी गईं कल्पनाये अवश्य ही साकार होती हैं | इसमें कोई दो राय नहीं है |

        जय राम जी की 

         पंडित प्रताप भानु शर्मा 


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